Amargyan
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निशा के घन -घोर अँधेरे में
निशा के घन -घोर अँधेरे में ,
में चलता रहा पग्दंदियो पे .
में तन्हा , में अकेला चलता रहा ,
फिर भी मुड कर न
देखा उन रहो को ,
बढते गए , सहते गए ,
उन चुभते काँटों को .
बस यही सोचता रहा
मंजिल है इसी और ,
बस बाकी है कुछ दूर ,
यही है वो विस्वास
जो करता रहा सदा हमें
उर्जा से ओत -प्रोत ..
उर्जा से ओत -प्रोत ..
…… अमरेश बहादुर सिंह …….
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