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मैंने देखा है …
इस जग में कितनो को रोता हुआ
किसी को भी देख लो
कोई अपने कर्मो से रोता है
तो कोई अपने पूर्व कर्मो से रोता है ||
कोई चिंता कर कर रोता है
कोई रो रो कर रोता है ..
यह कैसी दुनिया है …
जहा अपने ही अपनों की
रक्त बहाने की चाहत रखता है |
पुत्र पिता से नफरत का
मशाल जलाये रखा है …||
माता भी कुमाता बने को तैयार है
जो मैं देखा रहा हू …
यह कैसी लीला है |
जो जगत्प्रभु के भी समझ के परे है …||
कई को ख़ुशी से रोता हुआ देखा है ..
कई को प्यार में धोखा खा कर
रोते भी देखा है
प्यार में मरते हुए भी देखा है
प्यार के नाम पे कितनो को लात – जुते खाते हुए भी देखा है ||
देखा तो बहुत कुछ है …
कुछ तो कहने योग्य ही नहीं है ..
की वो किस बात पे रोते है ..
जिनको कष्ट का ज्ञान ही नहीं है …||
यह कैसी दुनिया है ..
जहा लोग बात बात पे रोते है ..
कुछ तो बिना बात के भी रोते है ..
जिनको देख के सामने वाला भी रो देता है ||
कुछ तो मन ही मन में रोते है ..
जो घुट घुट के मरते है ..
यह कैसी विडंबना है !
चारो ओर बस रोने वाले ही नजर आते है …||
क्यू रोते है ..??????
किसी ने सोचा है !
उनको रुलाने वाले और कोई नहीं बस हमही अपने है ..
जो स्वार्थ में अपनों का ही गला घोट रहे है …
यह कैसा रोना है !!!!
जिसे देख कर मेरे नयन नीर छलकने को व्याकुल है | |
अमरेश बहदुर सिंह
(Amresh bahadur Singh )
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