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मैंने देखा हैं …(भाग -2)कितनो को हंसते हुए भी…

Amargyan
Amargyan
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…सर्वप्रथम आप सभी को दीवाली की हार्दिक शुभ कामनाये…

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कितनो को हंसते हुए
भी मैंने देखा हैं !
कब हंसते हैं , कहाँ हंसते हैं ,
बस हंसते ही रहते हैं /
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इतना हंसते हैं , इतना हंसते है ,
पागल की भी उपाधि ,
स्वीकार कर लेते हैं /
हंसने की भी अपनी – अपनी कला होती है …
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कोई मन ही मन में हंसता है ,
कोई ठहाके लगा लगा कर हंसता है /
कुछ तो दिखावे के हंस लेते है ,
कुछ तो वो भी नहीं हंसते है ,
चलो जो हंसा ,हंसा तो सही/*
*/.
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ये कैसी दुनिया हैं !
जहाँ हंसने पर भी ,
टिकट कट जाता है /
जो हँसे तो पछताय ,
न हँसे तो पछताय//
.
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इतना होता तो भी ठीक था .
यह तो हंसी – हंसी में ,
सब कुछ लुट जाता है /
क्षण भर में मातम सा छा जाता है/*/
*/.
.
यह कैसी दुनिया हैं !
जहा हंसी – हंसी में ,
सब कुछ हो जाता है /
कानों – कानों खबर लग जाती हैं .
क्षण भर में सब बदल जाता है /
.
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हंसते-हंसते खुशियाँ फिर आ जाती हैं /
यह हंसी- हंसी का खेल है ,
जो हंसते-हंसते आता है /
हंसी भी अपने आप में ,
एक हंसी है !
जो सब के बस का नहीं है /
.
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यहाँ हंसी – हंसी में सब मिल जाता है ,
जो प्रजापति लिखा भी नहीं होता/*
*/जो प्रजापति लिखा भी नहीं होता/*
*/ये तो हंसी – हंसी की बात है /
कोई हंसी में देवेन्द्र बन जाता है /
तो कोई इन्द्रजीत बन जाता है/*
*/.
.
बनने को कुछ भी बना जा सकता है ,
बस हंसने की कला होनी चाहिए/*
*/हंसी में सब कुछ पाया जा सकता है …
हंसी में सब कुछ गवांया भी जा सकता है …
यह हंसने वाले की कला पर ,निर्भर करता है
.
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………….अमरेश बहादुर सिंह ……….
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